Rajasthan Introduction || राजस्थान परिचय 

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राजस्थान की अनोखी कहानी ?

संस्कृतिक संपदा की द्रष्टि से संपन्न, भक्ति और शौर्य ( वीरता ) का संगमस्थल तथा साहित्य, कला एवं संस्कृति की अजस्र त्रिवेणी ' राजस्थान ' हमारे देश का क्षेत्रफल की द्रष्टि से सबसे बड़ा राज्य ( मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद ) है | यह देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है | यहाँ का संस्कृतिक वैभव बेजोड़ है | साहसी, वीर, गोरवमयी संस्कृति , त्याग एवं बलिदान की प्रतिमूर्ति नारियों , शौर्य एवं उदारता आदि भावनाओं का सर्वाधिक संचार मानों संपूर्ण विश्व में इसी भूमि पर हुआ है |


  1. राजस्थान की विभिन्न इकाइयों के प्रचलित नाम 

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राजस्थान को भागो में बाटने वाली रेखा है ?

राजस्थान के लगभग मध्य से निकलने वाली तथा इसे दो जलवायवीय भागों में विभक्त करने वाली एवं राज्य की रीड की हड्डी कही जाने वाली प्राचीनतम अरावली पर्वतमाला व उससे प्रवाहित होने वाली अनेक महत्वपूर्ण सरिताएँ ( नदियाँ ) यथा बनास , बेडच , बाणगंगा , कालीसिंध , मेनाल , लूणी आदि प्रागेतिहासिक काल से लेकर आज तक कई मानव सभ्यताओं के उत्थान एवं पतन की शाक्षी रही हैं | इस भू-भाग में निम्न पूरा-पाषाण युग, उत्तर-पाषाणकाल , कांस्ययुगीन सिन्धु सभ्यता खूब फली-फूली और चिरकाल में इसी भूमि के गर्भ में विलीन हो गई , जिनके अवशेष उत्खनन में यदा-कदा पुरातात्विक अवशेषों के रूप में मिलते रहे है , जो यहाँ की सम्रद प्राचीन धरोहर का दिग्दर्शन करते है | यहाँ की शौर्य गाथाएँ , वीरों के पराक्रम के किस्से , लोकधर्मी कलाओं की सम्रद व विराट विरासत सदियों से तपस्वी-मनस्वी की तरह रेत की चादर ओढ़े निस्वार्थ भाव से भारत माता की सांस्कृतिक विरासत को अपना सब कुछ न्योछावर करती रही है | और उसे विश्व में और सम्रद बनती रही है |

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राजस्थान को किस-किस नाम से पुकारा जाता है?

इस मरु प्रधान प्रदेश को समय-समय पर विभिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है | महर्षि वाल्मिकी ने इस भू-भाग के लिए ' मरुकान्तार ' शब्द का प्रयोग किया है | ' राजस्थान ' शब्द का प्राचीनतम प्रयोग ' राजस्थानीयादित्य वसंतगढ़ ( सिरोही ) के शिलालेख ( विक्रम संवत् 682 में उत्कीर्ण ) में हुआ है | इसके बाद ' मुहणोत नेणसी री ख्यात ' एवं ' राजरुपक ' नामक ग्रंथों में भी ' राजस्थान ' शब्द का प्रयोग हुआ है |

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 राजस्थान का नाम राजस्थान केसे पड़ा ?

छठी शताब्दी में इस राजस्थानी भू-भाग में राजपूत शासकों ने अलग-अलग रियासतें कायम कर अपना शासन स्थापित किया | इस रियासतों में मेवाड़ के गुहिल , मारवाड़ के राठोड़ , ढूंढाड के कच्छवाहा व अजमेर के चौहान आदि प्रसिद्ध राजपूत वंश थे | राजपूत राज्यों की प्रधानता के कारण ही कालान्तर में इस सम्पूर्ण भू-भाग को राजपुताना ' कहा जाने लगा | राजस्थानी भू-भाग के लिए ' राजपुताना ' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन 1800 ई. में जोर्ज थॉमस द्वारा किया गया था | ' कर्नल जेम्स टॉड ' ( पश्चिमी एवं मध्य भारत के राजपूत राज्यों के पोलिटिकल एजेन्ट ) ने इस प्रदेश को ' राजथान ' कहा क्योंकि तत्समय स्थानीय बोलचाल एवं लोकिक साहित्य में राजाओं के निवास के प्रान्त को ' रायथान ' कहते थे | ब्रिटिशकाल में यह प्रान्त ' राजपुताना ' या ' रजवाड़ा ' तथा अजमेर-मेरवाड़ा ( अजमेर व आस-पास का भू-भाग ) के नाम से पुकारा जाता था | इस भोगोलिक भू-भाग के लिए राजस्थान ' ( Rajas'than) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कर्नल जेम्स टॉड ने राजथान के इतिहास पर 1829 में लन्दन से प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति ' Annals and Antiquities of Rajas'than' ( इसका अन्य नाम Central and Western Rajpoot States of India ) में किया | स्वतंत्रता पश्चात राज्य अन्तत: 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से इस सम्पूर्ण भोगोलिक प्रदेश का नाम ' राजस्थान ' स्वीकार किया गया |

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राजस्थान में क्या-क्या  सम्मिलित है ?

स्वतंत्रता के समय राजस्थान 19 देशी रियासतों , 3 ठिकाने कुशलगढ़ , लावा व निमराणा तथा चीफ कमिश्नर द्वारा प्रशासित अजमेर-मेरवाड़ा को छोड़कर सभी क्षेत्र राजस्थान में सम्मिलित हो गए थे | उस समय अजमेर-मेरवाड़ा के प्रथम एवं एक मात्र मुख्यमंत्री श्री हरिभाऊ उपाध्याय थे | राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवम्बर, 1956 को आया |

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